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वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता
कहने में अर्थ नहीं
कहना पर व्यर्थ नहीं
मिलती है कहने में
एक तल्लीनता।
वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता।
आस पास भूलता हूँ
जग भर में झूलता हूँ
सिंधु के किनारे जैसे
कंकर शिशु बीनता।
वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता।
कंकर निराले नीले
लाल सतरंगी पीले
शिशु की सजावट अपनी
शिशु की प्रवीनता।
वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता।
भीतर की आहट भर
सजती है सजावट पर
नित्य नया कंकर क्रम
क्रम की नवीनता।
वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता।
कंकर को चुनने में
वाणी को बुनने में
कोई महत्व नहीं
कोई नहीं हीनता।
वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता।
केवल स्वभाव है
चुनने का चाव है
जीने की क्षमता है
मरने की क्षीणता।
वाणी की दीनता
अपनी मैं चीन्हता।
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